मॉरीशस ने Organization for Economic Co-operation and Development (OECD) द्वारा निर्धारित अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन करने के लिए भारत-मॉरीशस कर संधि (DTAA) को अपडेट किया है। इसका उद्देश्य आधार क्षरण और लाभ स्थानांतरण (Base Erosion and Profit Shifting) (BEPS) को रोकना है।
23 फरवरी 2024 को अपने मंत्रिमंडल के फैसलों की सार्वजनिक विज्ञप्ति में, मॉरीशस सरकार ने यह कहा है: “भारतीय गणराज्य की सरकार और मॉरीशस गणराज्य की सरकार के बीच दोहरे करारोपण बचाव संधि में संशोधन के लिए एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने के लिए मंत्रिमंडल सहमत हो गया है। इसका उद्देश्य आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के आधार अपरदर्शन और लाभ स्थानांतरण (BEPS) न्यूनतम मानकों का पालन करना है।”
- पहले की स्थिति (Before 2016):
- विदेशी निवेशक (Foreign Investors) (पोर्टफोलियो और प्रत्यक्ष दोनों) भारत में निवेश के लिए मॉरीशस को पसंद करते थे।
- ऐसा इसलिए था क्योंकि भारत-मॉरीशस कर संधि (India-Mauritius Tax Treaty) (DTAA) विदेशी निवेशकों को अपने घरेलू देश में पूंजीगत लाभ कर का भुगतान करने की अनुमति देती थी।
- मॉरीशस में पूंजीगत लाभ पर कोई कर नहीं था, जिससे निवेशकों को लाभ होता था।
- बदलाव (2016):
- अप्रैल 1, 2017 के बाद भारतीय कंपनियों में निवेश से होने वाले पूंजीगत लाभ पर अब भारत में कर लगेगा।
- इस बदलाव ने न केवल मॉरीशस से निवेश को प्रभावित किया बल्कि सिंगापुर से भी प्रभावित किया क्योंकि भारत के साथ उसकी कर संधि भी मॉरीशस वाली संधि से जुड़ी हुई थी।
संक्षेप में, 2016 से पहले की कर संधि विदेशी निवेशकों को भारत में कर बचाने का एक तरीका प्रदान करती थी। लेकिन 2016 के बाद के बदलावों ने इस लाभ को कम कर दिया है।
भारत-मॉरीशस कर संधि में संशोधन का बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर प्रभाव:
यह बदलाव बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारत में अपने कर बिल को कम करने के लिए मॉरीशस को चैनल के रूप में इस्तेमाल करना कठिन बना सकता है।
2016 में दोहरे करारोपण बचाव संधि (DTAC) में संशोधन के बाद, मॉरीशस से प्राप्त प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वास्तव में काफी कमी आई है। निचे दिया गया टेबल यह दर्शाता है कि उल्लिखित वर्षों में मॉरीशस से भारत में हुआ FDI प्रवाह:
वर्ष | FDI Flow (अरब अमेरिकी डॉलर में) |
---|---|
2016-17 | 15.72 |
2021-22 | 9.39 |
2022-23 | 6.13 |
जैसा कि आप देख सकते हैं, संशोधन के बाद से मॉरीशस से भारत में FDI Flow आधे से अधिक कम हो गया है।
- मॉरीशस अब भारत का तीसरा सबसे बड़ा FDI स्रोत है,
- भारतीय कंपनियों ने पिछले पांच वर्षों में मॉरीशस में केवल 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है।
- इससे पता चलता है कि FDI Flow में कमी कुल मिलाकर भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट के बजाय निवेश पैटर्न में बदलाव के कारण हो सकती है।
मॉरीशस मंत्रिमंडल के इस संशोधन ने भारत-मॉरीशस कर संधि को BEPS MLI के तहत एक कवर टैक्स एग्रीमेंट (covered tax agreement) का दर्जा दिला दिया है। दूसरे शब्दों में कहें तो, भारत और मॉरीशस के बीच मौजूदा कर संधि को अब BEPS के तहत निर्धारित न्यूनतम मानकों का पालन करना होगा।
BEPS का मतलब है “आधार अपरदर्शन और लाभ स्थानांतरण” (Base Erosion and Profit Shifting)। यह Organization for Economic Co-operation and Development (OECD) की एक पहल है जिसका उद्देश्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कर चोरी की रोकथाम करना है। कवर टैक्स एग्रीमेंट वे कर संधियाँ होती हैं जिन पर BEPS MLI लागू होता है।
नए नियम:
- लाभों के सीमांकन खंड (Limitation of Benefits Clause): यह संधि लाभों को केवल उन्हीं कंपनियों को सीमित करता है जिनकी मॉरीशस में वैध आर्थिक गतिविधि है।
- मुख्य उद्देश्य परीक्षण (Principal Purpose Test): यह आकलन करता है कि मॉरीशस में ढांचा स्थापित करने का मुख्य कारण कर लाभ प्राप्त करना है या नहीं।
- विवाद समाधान: कर विवादों को सुलझाने के लिए समझौते में मध्यस्थता शामिल हो सकती है।
भारत-मॉरीशस कर संधि में संशोधन के संभावित परिणाम:
अल्पावधि में:
- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) में कमी: संशोधनों के कारण कुछ अल्पावधि अनिश्चितता पैदा हो सकती है, जिससे विदेशी कंपनियां भारत में नए निवेश करने में संकोच कर सकती हैं।
- मौजूदा निवेशों का पुनर्मूल्यांकन: कुछ कंपनियां भारत में अपने मौजूदा निवेशों का पुनर्मूल्यांकन कर सकती हैं और यह तय कर सकती हैं कि क्या वे नए कर नियमों के तहत व्यवहार्य बने रहेंगे।
- कर विवादों में वृद्धि: नए नियमों की व्याख्या को लेकर अनिश्चितता के कारण कर विवादों में वृद्धि हो सकती है।
दीर्घावधि में:
- कर चोरी में कमी: नए नियमों से भारत सरकार को कर चोरी से होने वाले राजस्व नुकसान को कम करने में मदद मिल सकती है।
- बेहतर कर अनुपालन: कंपनियों को कर नियमों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे भारत में कर आधार का विस्तार हो सकता है।
- अधिक पारदर्शिता: नए नियमों से कर व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता आ सकती है, जिससे निवेशकों का भरोसा बढ़ सकता है।
- निवेश का रुख बदलना: कुछ निवेश भारत से अन्य देशों में स्थानांतरित हो सकते हैं जिनके कर नियम अधिक अनुकूल हैं।
अन्य संभावित परिणाम:
- मॉरीशस के माध्यम से किए गए निवेशों की जांच में वृद्धि: भारतीय कर अधिकारी मॉरीशस के माध्यम से किए गए निवेशों की जांच कर सकते हैं यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे नए नियमों का अनुपालन करते हैं।
- मॉरीशस में कर संरचनाओं में बदलाव: मॉरीशस अपनी कर संरचनाओं को बदलने के लिए मजबूर हो सकता है ताकि वे भारत के साथ संशोधित कर संधि के अनुरूप हों।
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