10 फरवरी 2024 को, जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने समाधि मरण की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। 12 फरवरी को उन्होंने अन्न-जल का त्याग कर अखंड मौन व्रत धारण किया और 18 फरवरी 2024 को देर रात 2:30 बजे उन्होंने समाधि ले ली।
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Life of Aacharya VidhyaSagar Ji Maharaj: आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जीवन
आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के सदलगा गांव में हुआ था। उन्होंने 1973 में 27 वर्ष की आयु में जैन मुनि दीक्षा ग्रहण की। वे एक महान शिक्षाविद्, समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने शिक्षा, सामाजिक न्याय और धार्मिक सद्भाव के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
Samadhi Maran in Jainism: जैन धर्म में समाधि मरण
जैन धर्म में समाधि मरण एक प्राचीन परंपरा है, जिसे सल्लेखना के नाम से भी जाना जाता है। यह एक स्वैच्छिक मृत्यु की प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे अन्न-जल का त्याग कर शरीर को त्याग देता है। यह आत्म-संयम और आध्यात्मिक शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, यह एक जटिल विषय है जिस पर गहन चिंतन और सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है।
Process of Samadhi Maran: समाधि मरण की प्रक्रिया
समाधि मरण धीरे-धीरे, चरणबद्ध तरीके से होता है। इसमें आमतौर पर ये चरण शामिल होते हैं:
- मनोवैज्ञानिक तैयारी: व्यक्ति गहन आत्मचिंतन और ध्यान के माध्यम से समाधि मरण के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करता है।
- संयम: व्यक्ति धीरे-धीरे कठोर नियमों का पालन करना शुरू कर देता है, जिसमें उपवास, कम नींद लेना और बाहरी दुनिया से कम से कम जुड़ाव शामिल है।
- अन्न-जल त्याग: अंतिम चरण में, व्यक्ति पूरी तरह से अन्न-जल का त्याग कर देता है और मौन व्रत धारण करता है। शरीर धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है और अंततः समाधि की अवस्था में प्रवेश करता है।
समाधि मरण के पीछे दर्शन:
जैन धर्म में, शरीर को एक बंधन के रूप में देखा जाता है जो आत्मा की अंतिम मुक्ति में बाधा डालता है। समाधि मरण को आत्मा को भौतिक शरीर से मुक्त करने और मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग माना जाता है। यह इस बात पर जोर देता है कि मृत्यु को दुःखद घटना के रूप में नहीं, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा के चरमोत्कर्ष के रूप में देखा जाना चाहिए।
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Disputes on Samadhi Maran: जैन धर्म में समाधि मरण पर विवाद
जैन धर्म में समाधि मरण, जिसे सल्लेखना के नाम से भी जाना जाता है, सदियों से चली आ रही एक परंपरा है। हालाँकि, यह एक विवादास्पद विषय भी है, जिस पर कानूनी, नैतिक और धार्मिक पहलुओं से लगातार बहस होती रहती है। आइए, इस जटिल मुद्दे की गहराई में उतरें और विभिन्न पक्षों को समझने का प्रयास करें।
विवाद के प्रमुख बिंदु:
- आत्महत्या बनाम धार्मिक स्वतंत्रता: समाधि मरण के विरोधी इसे आत्महत्या के एक रूप के रूप में देखते हैं, जो किसी भी धर्म में वर्जित है। उनका मानना है कि व्यक्ति को जीवन जीने का अधिकार है और उसे लेने का नहीं। समर्थक इसे धार्मिक स्वतंत्रता का हनन मानते हैं और तर्क देते हैं कि व्यक्ति को अपनी आस्था के अनुसार मृत्यु का रास्ता चुनने का अधिकार है।
- नैतिक और कानूनी जटिलताएं: कुछ मामलों में, समाधि मरण नाबालिगों या मानसिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जिससे नैतिक और कानूनी सवाल उठ खड़े होते हैं। क्या नाबालिग या मानसικ रूप से अक्षम व्यक्ति सही निर्णय लेने में सक्षम होते हैं? ऐसी परिस्थितियों में परिवार की भूमिका क्या होनी चाहिए? कानून ऐसे मामलों में किस तरह हस्तक्षेप कर सकता है?
- दबाव और शोषण की आशंका: आशंका जताई जाती है कि कुछ मामलों में परिवार या धार्मिक संस्थाएं व्यक्ति पर समाधि मरण के लिए दबाव डाल सकती हैं, खासकर बुजुर्गों या बीमार व्यक्तियों पर। ऐसे में यह सुनिश्चित करना मुश्किल हो जाता है कि निर्णय स्वतंत्र रूप से लिया गया है।
- चिकित्सा हस्तक्षेप का प्रश्न: यदि समाधि मरण लेने वाले व्यक्ति की तबियत बिगड़ जाती है, तो क्या चिकित्सा हस्तक्षेप करना उचित है? यह एक नैतिक दुविधा खड़ी करता है, क्योंकि चिकित्सा हस्तक्षेप व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध जा सकता है, लेकिन उसकी जान बचाने के लिए भी जरूरी हो सकता है।